हवाओं मे कसैला धुआँ सूंघता हूं
फजाओं मे तेरी महक ढूंढता हूं
भटकता हूं तेरे कूचे मे कब से
हर एक से तेरा पता पूंछता हूं
इक बार तेरी ऑखों से पी थी
अब तक तेरे नषे मे झूमता हूं
मुसलसल पडती हैं यादों की चोटे
पत्थर सही पै हर रोज टूटता हूं
गर झूठ से तख्तेताउस भी मिले,
तो ऐसी बाद्शाहियत पे थूंकता हूं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
फजाओं मे तेरी महक ढूंढता हूं
भटकता हूं तेरे कूचे मे कब से
हर एक से तेरा पता पूंछता हूं
इक बार तेरी ऑखों से पी थी
अब तक तेरे नषे मे झूमता हूं
मुसलसल पडती हैं यादों की चोटे
पत्थर सही पै हर रोज टूटता हूं
गर झूठ से तख्तेताउस भी मिले,
तो ऐसी बाद्शाहियत पे थूंकता हूं
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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