ज़िदगी से शिकायत भी नही
चेहरे पे मुसकुराहट भी नही
हमारे घर अंधेरा न पाओगे
लेकिन जगमगाहट भी नही
ऐसा भी नही हम बेखाफ हैं
पै चेहरे पे घबराहट भी नही
चौराहे पे लाश पडी है कबसे
बस्ती मे सुगबुगाहट भी नही
सूरज कब का विदा हो गया
चॉद उगने की आहट भी नही
मुकेश इलाहाबादी ...........
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