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Tuesday, 13 August 2013

ऑखों मे ये वीरानी अच्छी नही लगती


ऑखों मे ये वीरानी अच्छी नही लगती
तेरे चेहरे पे उदासी अच्छी नही लगती

कि लौट आओ दिले मकॉ सूना सूना है
शामो सहर वीरानी अच्छी नही लगती

सुलझा दूं तेरी ये उलझी - उलझी जुल्फें
ये लटें बिखरी बिखरी अच्छी नही लगती

आओ फिर से जला लें चरागे मुहब्ब्त कि
स्याह नागन सी तीरगी अच्छी नही लगती

मुहब्ब्त भी क्या अजब शै होती है मुकेश
इक पल की भी दूरी अच्छी नही लगती


मुकेश इलाहाबादी .......................


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