हर बार वही होती है
सरकार वही होती है
शिर बदल जाते हैं पै
तलवार वही होती है
कश्ती कोई भी डूबे है
मझधार वही होती है
हथकड़ी सोने की सही
झनकार वही होती है
ज़ुल्म सहे औरत और
शरमशार वही होती है
मुकेश इलाहाबादी ---
सरकार वही होती है
शिर बदल जाते हैं पै
तलवार वही होती है
कश्ती कोई भी डूबे है
मझधार वही होती है
हथकड़ी सोने की सही
झनकार वही होती है
ज़ुल्म सहे औरत और
शरमशार वही होती है
मुकेश इलाहाबादी ---
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