हालात से समझौता करना नही आया
अपने हक के लिए लड़ना नहीं आया
पिंजड़े में बैठ कर परों को तौलता रहा
खुले आसमान मे उड़ना नहीं आया
सैकड़ों बार लिख लिख के काट दिया
ख़त इक प्यारा सा लिखना नहीं आया
अपनों ने काटा और तूफ़ान ने तोडा पर
तिनके सा झुक के फिर तनना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
अपने हक के लिए लड़ना नहीं आया
पिंजड़े में बैठ कर परों को तौलता रहा
खुले आसमान मे उड़ना नहीं आया
सैकड़ों बार लिख लिख के काट दिया
ख़त इक प्यारा सा लिखना नहीं आया
अपनों ने काटा और तूफ़ान ने तोडा पर
तिनके सा झुक के फिर तनना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी -------------------------
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