शीरी जुबान का हमें लहज़ा नही आया
घुमा - फिरा के बात करना नहीं आया
पथरीली कंटीली राहों की आदत रही
कालीन पे हमे पाँव रखना नहीं आया
रुख की मानिंद सीधा चलता रहा हूँ
ऊँट की तरह तिरछा चलना नहीं आया
बेशक तूफ़ान औ आंधियां बुझा दे, पर
ज़रा सी फूंक से हमे बुझना नहीं आया
जब जब भी लिखा सच औ तीखा लिखा
मुकेश तुझे कभी कसीदे गढ़ना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
घुमा - फिरा के बात करना नहीं आया
पथरीली कंटीली राहों की आदत रही
कालीन पे हमे पाँव रखना नहीं आया
रुख की मानिंद सीधा चलता रहा हूँ
ऊँट की तरह तिरछा चलना नहीं आया
बेशक तूफ़ान औ आंधियां बुझा दे, पर
ज़रा सी फूंक से हमे बुझना नहीं आया
जब जब भी लिखा सच औ तीखा लिखा
मुकेश तुझे कभी कसीदे गढ़ना नहीं आया
मुकेश इलाहाबादी --------------------------
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