बेहद घने
सन्नाटे मे
मीलों फैले
वीराने में भी
अक्सर,
चौंक उठता है
मेरा मन
तब
उझक कर
देखती हैं
मेरी निगाहें
अपने आस पास
फिर,
किसी को न पा कर
उदास हो जाती हैं
और मन
एक बार फिर
सिमट जाता है
अपने एकाकीपन मे
मीलों फैले बियाबान में
मुकेश इलाहाबादी -------
सन्नाटे मे
मीलों फैले
वीराने में भी
अक्सर,
चौंक उठता है
मेरा मन
तब
उझक कर
देखती हैं
मेरी निगाहें
अपने आस पास
फिर,
किसी को न पा कर
उदास हो जाती हैं
और मन
एक बार फिर
सिमट जाता है
अपने एकाकीपन मे
मीलों फैले बियाबान में
मुकेश इलाहाबादी -------
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