Pages

Friday, 10 January 2014

बेहद घने सन्नाटे मे

बेहद घने
सन्नाटे मे
मीलों फैले
वीराने में भी
अक्सर,
चौंक उठता है
मेरा मन
तब
उझक कर
देखती हैं
मेरी निगाहें
अपने आस पास
फिर,
किसी को न पा कर
उदास हो जाती हैं
और मन
एक बार फिर
सिमट जाता है
अपने एकाकीपन मे
मीलों फैले बियाबान में

मुकेश इलाहाबादी -------



 

No comments:

Post a Comment