Pages

Thursday, 30 January 2014

दिल में ताज़ी हवा रक्खो

दिल में ताज़ी हवा रक्खो
दिले दरीचा खुला रक्खो

इतनी मायूसी अच्छी नही
चरागे हौसला जला रक्खो

शख्शियत महक उट्ठेगी
गुले मुहब्बत खिला रक्खो

कोई भला करे या बुरा करे
अपने होठों पे दुआ रक्खो

ग़म अपना सूना सको तुम
ऐसा कोई इक ठिया रक्खो

मुकेश इलाहाबादी ----------

No comments:

Post a Comment