कुछ
बेहतर करने से
नहीं घबड़ाता
अकेला पड़ने
और विरोध सहने से
बस , दुःख होता है
लोगों की मक्कारी
और दोमुहेपन से
वक़्त के श्यामपट्ट पे
सिर्फ मै ही
बेहतर लिख सकता हूँ
ऐसा मेरा दावा नहीं
हाँ, इतना ज़रूर है
मै , 'सच' को 'सच'
और 'झूठ' को 'झूठ'
लिख सकता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------
बेहतर करने से
नहीं घबड़ाता
अकेला पड़ने
और विरोध सहने से
बस , दुःख होता है
लोगों की मक्कारी
और दोमुहेपन से
वक़्त के श्यामपट्ट पे
सिर्फ मै ही
बेहतर लिख सकता हूँ
ऐसा मेरा दावा नहीं
हाँ, इतना ज़रूर है
मै , 'सच' को 'सच'
और 'झूठ' को 'झूठ'
लिख सकता हूँ
मुकेश इलाहाबादी ------
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