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Monday, 12 May 2014

तेरे जिस्म औ ज़ेहन का ज़र्रा - ज़र्रा

तेरे जिस्म औ ज़ेहन का ज़र्रा - ज़र्रा मेरे वजूद का हिस्सा है
कि, तेरी इन महकती साँसों से ही ज़िंदगी मिलती  है 
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------

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