तेरे जिस्म औ ज़ेहन का ज़र्रा - ज़र्रा मेरे वजूद का हिस्सा है
कि, तेरी इन महकती साँसों से ही ज़िंदगी मिलती है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------
कि, तेरी इन महकती साँसों से ही ज़िंदगी मिलती है
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------------------
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