रात भर के जागे; लगते हो
किसी ग़म में डूबे लगते हो
चलो मै दरख़्त बन जाता हूँ
मुसाफिर तुम थके लगते हो
इतना भोलापन भी ठीक नहीं
इंसान तो तुम भले लगते हो
कहो तो मै दरिया बन जाऊं
बहुत दिनों के प्यासे लगते हो,,
मुझे भी अपने कारवाँ में ले लो
मुसाफिर तुम अच्छे लगते हो
मुकेश इलाहाबादी --------------
किसी ग़म में डूबे लगते हो
चलो मै दरख़्त बन जाता हूँ
मुसाफिर तुम थके लगते हो
इतना भोलापन भी ठीक नहीं
इंसान तो तुम भले लगते हो
कहो तो मै दरिया बन जाऊं
बहुत दिनों के प्यासे लगते हो,,
मुझे भी अपने कारवाँ में ले लो
मुसाफिर तुम अच्छे लगते हो
मुकेश इलाहाबादी --------------
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