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Friday, 23 May 2014

जब भी चाँद उगता है


जब भी चाँद उगता है
हरदम बातें करता है
 

आज सुबह से चुप है
कुछ उदास लगता है
 

हमसे न बोले है, पर 
अपना सा लगता है
 

चिलमन से वो झांके है
औ हौले से मुस्काता है

चाहत है कि पूंछूं हाल,
पै मुझको डर लगता है 

मुकेश इलाहाबादी -----

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