Pages

Saturday, 31 May 2014

कुछ तो ख़्वाब सुनहरे बुन लूँ

कुछ तो ख़्वाब सुनहरे बुन लूँ
तुझको अपना साथी चुन लूँ

तू मेरे घर आये इसके पहले
मै प्रेम पंथ के कंकर चुन लूँ 

राग मिलन न जाना अबतक
कहे तो तेरी धड़कन सुन लूँ ?

कहे तो तेरे गज़रे की ख़ातिर
फ़लक से चाँद सितारे चुन लूँ

तो बोले तो जैसे सरगम बाजे 
ग़र छेड़ूँ ग़ज़ल तो तेरी धुन लूँ

मुकेश इलाहाबादी -------------

No comments:

Post a Comment