है क्या दरिया के दिल में क्या जानू
डूब रहा हूँ या उबर रहा हूँ क्या जानू
लफ़्ज़ों में कुछ बोले तो कुछ समझूँ
खामोश निगाहों में है क्या क्या जानू
हमने तो कह दी अपने दिल की बात
अब इंकार मिले या इक़रार क्या जानू
सूरज बनकर टंग गया हूँ आसमान में
जल रहा हूँ या चमक रहा हूँ क्या जानू
हूँ इंतज़ार में मै पथ में फूल बिछाकर
आएंगे या न आएंगे मै अब क्या जानू
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
डूब रहा हूँ या उबर रहा हूँ क्या जानू
लफ़्ज़ों में कुछ बोले तो कुछ समझूँ
खामोश निगाहों में है क्या क्या जानू
हमने तो कह दी अपने दिल की बात
अब इंकार मिले या इक़रार क्या जानू
सूरज बनकर टंग गया हूँ आसमान में
जल रहा हूँ या चमक रहा हूँ क्या जानू
हूँ इंतज़ार में मै पथ में फूल बिछाकर
आएंगे या न आएंगे मै अब क्या जानू
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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