संभल के चलाकर
इतना न डराकर
तू मुश्किलों में भी
फूल सा खिलाकर
माना कि तू बडा है
कुछ तो झुकाकर
दिन रात क्यूँ चले
थोड़ा तो रुकाकर
मुकेश की ग़ज़ल
कभी तो सुनाकर
मुकेश इलाहाबादी --
इतना न डराकर
तू मुश्किलों में भी
फूल सा खिलाकर
माना कि तू बडा है
कुछ तो झुकाकर
दिन रात क्यूँ चले
थोड़ा तो रुकाकर
मुकेश की ग़ज़ल
कभी तो सुनाकर
मुकेश इलाहाबादी --
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