हवा में खुनक सी है
कंही तो बारिस हुई है
चलो कुछ दूर चलते हैं
वहाँ इक नदी बहती है
दर्द से बोझिल हैं आखें
तुम्हारी पीर नई नही है
तिनकों के इस घोसले मे
इक सुन्दर बया रहतीं है
अक्सर नानी कहा करतीं
वीराने मे इक शै रहतीं है
नदी के उस मुहाने पे रात
इक सुन्दर परी उतरतीं है
चलो अब घर लौट चलते हैं
बारिस तेज़ होने वाली है
मुकेश इलाहाबादी ---------
कंही तो बारिस हुई है
चलो कुछ दूर चलते हैं
वहाँ इक नदी बहती है
दर्द से बोझिल हैं आखें
तुम्हारी पीर नई नही है
तिनकों के इस घोसले मे
इक सुन्दर बया रहतीं है
अक्सर नानी कहा करतीं
वीराने मे इक शै रहतीं है
नदी के उस मुहाने पे रात
इक सुन्दर परी उतरतीं है
चलो अब घर लौट चलते हैं
बारिस तेज़ होने वाली है
मुकेश इलाहाबादी ---------
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