सुनो तो सन्नाटा बोलता है
सुबह शाम परिंदा बोलता है
तुम जुबाँ क्यों नहीं खोलते?
इशारों से तो गूंगा बोलता है
हम सुनना नहीं चाहते, वर्ना
शहर का हर हादसा बोलता है
जनता सिर्फ चुपचाप सुनती है
हमारे यंहा सिर्फ नेता बोलता है
शायद हम बहरे हो गए मुकेश
क़ायनात का ज़र्रा- २ बोलता है
मुकेश इलाहाबादी --------------
सुबह शाम परिंदा बोलता है
तुम जुबाँ क्यों नहीं खोलते?
इशारों से तो गूंगा बोलता है
हम सुनना नहीं चाहते, वर्ना
शहर का हर हादसा बोलता है
जनता सिर्फ चुपचाप सुनती है
हमारे यंहा सिर्फ नेता बोलता है
शायद हम बहरे हो गए मुकेश
क़ायनात का ज़र्रा- २ बोलता है
मुकेश इलाहाबादी --------------
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