वो घर ग़मज़दा था
ग़म का मैक़दा था
कुछ चिंगारियां थी
बाकी तो धुंआ था
हवा की सरसराहट
अजब सन्नाटा था
दरो दीवार सीली थी
वो रात भर रोया था
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था
मुकेश इलाहाबादी ---
ग़म का मैक़दा था
कुछ चिंगारियां थी
बाकी तो धुंआ था
हवा की सरसराहट
अजब सन्नाटा था
दरो दीवार सीली थी
वो रात भर रोया था
शक इक वज़ह थी
घर बिखर गया था
मुकेश इलाहाबादी ---
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