ये ज़ुल्फ़ें और ये आँखें बोलती हैं
तुम्हारी मरमरी बाहें बोलती हैं
जब तुम कुछ नहीं बोलती हो
तब तुम्हारी अदाएं बोलती हैं
जब कभी साँझ देर से लौटूं
इंतज़ार में निगाहें बोलती हैं
तुम ऐसा गुलशन हो जिसकी
फूल और फिज़ाएँ बोलती हैं
तुम्हारे घर में रहने भर सेही
घर की दरो दीवारें बोलती हैं
मुकेश इलाहाबादी ------------
तुम्हारी मरमरी बाहें बोलती हैं
जब तुम कुछ नहीं बोलती हो
तब तुम्हारी अदाएं बोलती हैं
जब कभी साँझ देर से लौटूं
इंतज़ार में निगाहें बोलती हैं
तुम ऐसा गुलशन हो जिसकी
फूल और फिज़ाएँ बोलती हैं
तुम्हारे घर में रहने भर सेही
घर की दरो दीवारें बोलती हैं
मुकेश इलाहाबादी ------------
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