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Friday, 1 August 2014

सुबह औ शाम नकली है


सुबह औ शाम नकली है
सभी मुस्कान नकली है

अब खेतों में जो उगता है
वो गेहूं और धान नकली है

सिर्फ पैकेजिंग चमकती है
अंदर का सामान नकली है

तुम जो बैठक में सजाये हो 
वो गुलो-गुलदान नकली है

तुम जिसे असली समझते हो
मुकेश वही इंसान नकली हैं

मुकेश इलाहाबादी ----------------

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