हार से वह अपनी बिफर गया
ताश के पत्तों सा बिखर गया
अभी - अभी इस सड़क से वो
इक अजनबी सा गुज़र गया
आज भी ढूंढता हूँ भीड़ में वह
मासूम सा चेहरा किधर गया
रास्ते तो थे तमाम फिर भी,
वह इधर गया न उधर गया
वो इक निगाह प्यार की तेरी
मुकेश फिर से निखार गया
मुकेश इलाहाबादी -------------
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