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Sunday, 24 August 2014

भले ही तमाम ठोकरें खाता रहा हूँ मै

भले ही तमाम ठोकरें खाता रहा हूँ मै
कुछ खाशियत ले के जीता रहा हूँ मै
है अंदाज़े फ़क़ीरी रंवा मेरी रग रग में
दुनिया तेरे मिज़ाज़ का बंदा नहीं हूँ मै

मुकेश इलाहाबादी --------------------
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