मुहब्बत की नई परिभाषा बना लो
आओ ज़रा हमसे मेल जोल बढ़ा लो
मेरी ग़ज़ल सुनो सुन के मुस्कुरा दो
अपनी हंसी कुछ और हसीं बना लो
तुम्हारे चेहरे पे नमकीन कशिश है
थोड़ा प्यार की सोंधी खुशबू बसा लो
फलक से तोड़ के लाया हूँ मै ये जो
इन सितारों को आँचल में सजा लो
ख़ाके सुपुर्द हो के फूल सा खिल गया
इस फूल को अपने गज़रे में लगा लो
मुकेश इलाहाबादी -------------------
आओ ज़रा हमसे मेल जोल बढ़ा लो
मेरी ग़ज़ल सुनो सुन के मुस्कुरा दो
अपनी हंसी कुछ और हसीं बना लो
तुम्हारे चेहरे पे नमकीन कशिश है
थोड़ा प्यार की सोंधी खुशबू बसा लो
फलक से तोड़ के लाया हूँ मै ये जो
इन सितारों को आँचल में सजा लो
ख़ाके सुपुर्द हो के फूल सा खिल गया
इस फूल को अपने गज़रे में लगा लो
मुकेश इलाहाबादी -------------------
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