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Tuesday, 9 September 2014

गर इक बार भी कह दिए होते

 गर इक बार भी कह दिए होते
तुम्हारी राह में बिछ गए होते

तख्ते -ताउस और ताज़ क्या
चाँद -सितारे भी ला दिए होते

तुम्हारी इन उदास पलकों पे
काजल बन के सज गए होते

ज़रा सा इशारा तो किया होता
हम तेरे दर से ही चले गए होते

तुम्हारी इक मुस्कान के लिए
मुकेश कुछ भी कर गुज़रे होते

मुकेश इलाहाबादी --------------

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