गर इक बार भी कह दिए होते
तुम्हारी राह में बिछ गए होते
तख्ते -ताउस और ताज़ क्या
चाँद -सितारे भी ला दिए होते
तुम्हारी इन उदास पलकों पे
काजल बन के सज गए होते
ज़रा सा इशारा तो किया होता
हम तेरे दर से ही चले गए होते
तुम्हारी इक मुस्कान के लिए
मुकेश कुछ भी कर गुज़रे होते
मुकेश इलाहाबादी --------------
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