वो पसे -दीवार बैठे हैं
ग़म में डूबे यार बैठे हैं
दौलत औ शोहरत के
हज़ारों बीमार बैठे हैं
आँख उठा के देखो तो
सारे गुनहगार बैठे हैं
तुम ही नहीं हो मियाँ
सभी होशियार बैठे हैं
महफ़िल में आओ तो
तेरे तलबगार बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी --
ग़म में डूबे यार बैठे हैं
दौलत औ शोहरत के
हज़ारों बीमार बैठे हैं
आँख उठा के देखो तो
सारे गुनहगार बैठे हैं
तुम ही नहीं हो मियाँ
सभी होशियार बैठे हैं
महफ़िल में आओ तो
तेरे तलबगार बैठे हैं
मुकेश इलाहाबादी --
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