खाई - खंदक और पहाड आये
तमाम मुस्किलें मेरी राह आये
सारा सफर तन्हा काट डाला
तुम मुझे रह.रह के याद आये
नतो हौसला हारे और न हम
दिन चाहे जितने खराब आये
हमने तो तुम्हे कईबार बुलाया
न तुम आये नही जवाब आये
तुम्हे क्या मालूम मुकेश बाबू
जीस्त मे कितने सैलाब आये
मुकेश इलाहाबादी .....................
तमाम मुस्किलें मेरी राह आये
सारा सफर तन्हा काट डाला
तुम मुझे रह.रह के याद आये
नतो हौसला हारे और न हम
दिन चाहे जितने खराब आये
हमने तो तुम्हे कईबार बुलाया
न तुम आये नही जवाब आये
तुम्हे क्या मालूम मुकेश बाबू
जीस्त मे कितने सैलाब आये
मुकेश इलाहाबादी .....................
No comments:
Post a Comment