तुम्हारे न रहने
के बावजूद
शाम सिंदूरी है
तुम होती तब भी
इतनी ही सिंदूरी
होती ये शाम
हाँ !
इतना ज़रूर होता
कि कुछ और रंग
उभर आते
मेरी आखों में
तेरी आखों में
और तब
यह शाम
एक अलग तरह की
सिंदूरी शाम होती
मुकेश इलाहाबादी --
के बावजूद
शाम सिंदूरी है
तुम होती तब भी
इतनी ही सिंदूरी
होती ये शाम
हाँ !
इतना ज़रूर होता
कि कुछ और रंग
उभर आते
मेरी आखों में
तेरी आखों में
और तब
यह शाम
एक अलग तरह की
सिंदूरी शाम होती
मुकेश इलाहाबादी --
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