और तो कुछ नहीं रह गया
दर्द ही दर्द बाकी रह गया
मेला उजड़ गया, ज़ेहन में
वो चेहरा गुलाबी रह गया
ज़ख्म सारे भर गए, मगर
इक घाव अंदरूनी रह गया
यूँ तो हमने सारी बातें की,
जो कहना था वही रह गया
मुकेश दिल अपना ढूंढा रहा
शायद तेरे दर पे ही रह गया
मुकेश इलाहाबादी ------
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