जैसे लौट आते हैं, पंक्षी
फिर फिर अपने नीड में
साँझ फिर फिर
चूम लेती है
रात के माथे को
चिड़िया
फिर फिर बैठती है
उसी मुंडेर पे
बस ऐसे ही
मेरे सारे एहसास
सारे जज़्बात
सिमट आते हैं
तुम्हारी यादों की मुंडेर पे
और चहचताते रहते हैं देर तक
जब तक की ये यादें
चूम नहीं लेती नींद का माथा
मुकेश इलाहाबादी --------
फिर फिर अपने नीड में
साँझ फिर फिर
चूम लेती है
रात के माथे को
चिड़िया
फिर फिर बैठती है
उसी मुंडेर पे
बस ऐसे ही
मेरे सारे एहसास
सारे जज़्बात
सिमट आते हैं
तुम्हारी यादों की मुंडेर पे
और चहचताते रहते हैं देर तक
जब तक की ये यादें
चूम नहीं लेती नींद का माथा
मुकेश इलाहाबादी --------
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