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Monday, 28 September 2015

ये और बात आग सा दहकता है

ये और बात आग सा दहकता है
दिल  मेरा  भी मगर धड़कता है
सूरज की गर्म रोशनी शोख कर
रात  चाँद  चांदी सा चमकता है
ये किसने बोसा लिया है तेरा ?
चेहरा शर्मो हया से दमकता है  
जाने किस चाँद की जुस्तजूं में
आफताब दिन रात भटकता है
दिन भर मेहनत के बाद, साँझ
दर्द  मेरी नश -२  से टपकता है
मुकेश इलाहाबादी ---------------

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