एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 6 September 2015
ज़माना ख़िलाफ़ था
ज़माना ख़िलाफ़ था
ख़ुदा मेरे साथ था
न नीचे ज़मी थी न
ऊपर आसमान था
तेरी यादों बातों का
मेरे संग असबाब था
रात जब नींद आई
तेरा ही ख्वाब था
मुझे नई ज़िंदगी दी
वो तेरा ही प्यार था
मुकेश इलाहाबादी -
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