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Tuesday, 3 November 2015

आईना

आईना पोछ कर
कई -कई ऐंगल से
अपना चेहरा देखते हुए
गुनगुना रही होती है कोई प्रेम गीत है
तभी - अचानक माँ की आवाज़ सुन
हड़बड़ाहट में आईना वही छोड़
भागती है माँ के पास उसकी टहल सुनने
और,,  भूल जाती है 'प्रेम गीत'

साड़ी के पल्लू से
आईना साफ़ कर
देखती है- अपना चेहरा
लगाती है -
ठीक माथे के बीचों बीच
लाल गोल बिंदी
और भँवरे से झूमते
झुमके देख
भूल जाती है
दिन भर की थकन
महंगाई और आमदनी में संतुलन बिठाने की
ज़द्दो जहद
और गुनगुनाने लगती है -
प्रेम गीत

मुकेश इलाहाबादी --------------------------

  

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