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Friday, 26 February 2016

चाँद जैसे ही झील में उतारना चाहता है

चाँद
जैसे ही झील में
उतरना चाहता है
लहरें कभी
कुनमुना कर
कभी मुस्कुराकर
करवट बदल लेती हैं
चाँद
कभी शरमा कर
कभी घबरा कर
फिर फिर
जा टांगता है
आकाश में
फिर वही से
देखता है
ठहरी हुई
नीली झील को

मुकेश इलाहाबादी -----

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