चाँद
जैसे ही झील में
उतरना चाहता है
लहरें कभी
कुनमुना कर
कभी मुस्कुराकर
करवट बदल लेती हैं
चाँद
कभी शरमा कर
कभी घबरा कर
फिर फिर
जा टांगता है
आकाश में
फिर वही से
देखता है
ठहरी हुई
नीली झील को
मुकेश इलाहाबादी -----
जैसे ही झील में
उतरना चाहता है
लहरें कभी
कुनमुना कर
कभी मुस्कुराकर
करवट बदल लेती हैं
चाँद
कभी शरमा कर
कभी घबरा कर
फिर फिर
जा टांगता है
आकाश में
फिर वही से
देखता है
ठहरी हुई
नीली झील को
मुकेश इलाहाबादी -----
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