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Monday, 22 August 2016

मैं खुशबू सा बिखर जाऊँ तो

मैं खुशबू सा बिखर जाऊँ तो
तेरा जिस्म छू कर आऊँ तो

हज़ारों हज़ार ग़म लेकर भी
हर वक़्त  हँसू मुस्कुराऊँ तो

तू चाँद है तेरा वज़ूद चाँदनी 
रात बन के लिपट जाऊँ तो

क्या मुझको गले लगाओगे
किसी रोज़ तेरे घर आऊं तो  

क्या मुझको वेणी में गूँथोगी
फूल बन कर खिल जाऊँ तो

मुकेश इलाहाबादी -------------

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