मैं खुशबू सा बिखर जाऊँ तो
तेरा जिस्म छू कर आऊँ तो
हज़ारों हज़ार ग़म लेकर भी
हर वक़्त हँसू मुस्कुराऊँ तो
तू चाँद है तेरा वज़ूद चाँदनी
रात बन के लिपट जाऊँ तो
क्या मुझको गले लगाओगे
किसी रोज़ तेरे घर आऊं तो
क्या मुझको वेणी में गूँथोगी
फूल बन कर खिल जाऊँ तो
मुकेश इलाहाबादी -------------
तेरा जिस्म छू कर आऊँ तो
हज़ारों हज़ार ग़म लेकर भी
हर वक़्त हँसू मुस्कुराऊँ तो
तू चाँद है तेरा वज़ूद चाँदनी
रात बन के लिपट जाऊँ तो
क्या मुझको गले लगाओगे
किसी रोज़ तेरे घर आऊं तो
क्या मुझको वेणी में गूँथोगी
फूल बन कर खिल जाऊँ तो
मुकेश इलाहाबादी -------------
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