शोर के नाम पे हवा सनसनाती है
या कि,मेरी खामोशी गुनगुनाती है
जब कभी सुनहरा ख्वाब देखा तब
आँखे मुस्कृराती नींद कुनमुनाती है
तुम्हारी मासूम हँसी को क्या कहूँ
चांदी के सिक्के सी खनखनाती है
मुकेश इलाहाबादी --------------
या कि,मेरी खामोशी गुनगुनाती है
जब कभी सुनहरा ख्वाब देखा तब
आँखे मुस्कृराती नींद कुनमुनाती है
तुम्हारी मासूम हँसी को क्या कहूँ
चांदी के सिक्के सी खनखनाती है
मुकेश इलाहाबादी --------------
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