आदम ने
होठों पे,
प्रेम गीत सजाए
ईव बांसुरी बन गईं
आदम,
कि इच्छा थी
सूरज बन जाये
ईव - फूल बन खिल गयी
आदम,
बादल बन बरसा
ईव - धरती बन भीगती रही
लहराती रही अपना धानी आँचल
सुमी,
मेरी ईव सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी ----------------
होठों पे,
प्रेम गीत सजाए
ईव बांसुरी बन गईं
आदम,
कि इच्छा थी
सूरज बन जाये
ईव - फूल बन खिल गयी
आदम,
बादल बन बरसा
ईव - धरती बन भीगती रही
लहराती रही अपना धानी आँचल
सुमी,
मेरी ईव सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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