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Friday, 28 April 2017

जब कभी सुबह का तारा शुक्र तारा देखता हूँ

जब
कभी  सुबह का तारा
शुक्र तारा देखता हूँ
तुम बहुत याद आती हो

जब कभी
दहकता डहलिया का
कोई फूल देखता हूँ
हया से लाल
तुम्हारा चेहरा याद आता है

जब कभी
रस से भरा महुआ टपकता है
तब तुम बहुत याद आती हो

सच ! सुमी, तुम बहुत याद आती हो

मुकेश इलाहाबादी ----------------







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