जब
कभी सुबह का तारा
शुक्र तारा देखता हूँ
तुम बहुत याद आती हो
जब कभी
दहकता डहलिया का
कोई फूल देखता हूँ
हया से लाल
तुम्हारा चेहरा याद आता है
जब कभी
रस से भरा महुआ टपकता है
तब तुम बहुत याद आती हो
सच ! सुमी, तुम बहुत याद आती हो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
कभी सुबह का तारा
शुक्र तारा देखता हूँ
तुम बहुत याद आती हो
जब कभी
दहकता डहलिया का
कोई फूल देखता हूँ
हया से लाल
तुम्हारा चेहरा याद आता है
जब कभी
रस से भरा महुआ टपकता है
तब तुम बहुत याद आती हो
सच ! सुमी, तुम बहुत याद आती हो
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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