कोइ नदी नहीं है, नाला नहीं है
फिर भी आगे का रास्ता नहीं है
साथ-साथ सफर किया जिसके
उस्से रिश्ता नहीं वास्ता नहीं है
सिर्फ मुर्दा यादें यहाँ पे रहती हैं
इस मकाँ में कोइ रहता नहीं है
सिर्फ शोरो गुल मिलेगा यहाँ
कोई किसी की सुनता नहीं है
सिल लिए मुकेश ने लब अपने
किसी से कुछ वो कहता नहीं है
मुकेश इलाहाबादी -------------
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