घिरती
सांझ का अँधेरा हो,
या कि, इंतज़ार
की बेचैनी
डिगा नहीं पाती
हिला नहीं पाती
जब तक, कि
उसका प्रिय आ नहीं जाता
छज्जे पे खड़ी
या डेहरी पे बैठी स्त्री को
मुकेश इलाहाबादी ---------
सांझ का अँधेरा हो,
या कि, इंतज़ार
की बेचैनी
डिगा नहीं पाती
हिला नहीं पाती
जब तक, कि
उसका प्रिय आ नहीं जाता
छज्जे पे खड़ी
या डेहरी पे बैठी स्त्री को
मुकेश इलाहाबादी ---------
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