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Tuesday, 23 May 2017

यादों की संदूकची


साड़ी ,
के रंग से मैच खाती
तुम्हारे गोल से चेहरे
की गोल सी बिंदी,
छोटी सी

तुम्हारी
दूधिया सी मखमली हंसी


कानो के कुंडल की
झपकती - चमकती परछाईं


चूड़ियों और कंगन की
खनखन

पायल की
छन - छन

और ढेर सारी यादें
तह कर रख ली हैं
एहतियात से 
यादों की संदूकची में

जिन्हे,
जब कभी जी उदास होगा
या, कि तेरी याद में हूब - चूब करेगा जी
तब संदूकची खोल देख लिया करूंगा तुझे

और इस संदूकची की चाबी किसी को नहीं दूंगा
किसी को भी नहीं दूंगा -
तेरी यादों की संदूकची की चाबी।

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

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