तब,
लबालब
थीं - तुम
बही
उमड़ती
घुमड़ती
बलखाती
यौवन के सावन में
पर
कुछ दूर चल कर सूख गयीं
तुम
शायद पहाड़ी नदी थी - तुम और
तुम्हारा प्रेम
यदि नहीं तो
बरसो फिर बरसो
और मै भीगूँ
झम झमा झम - अनवरत -अहर्निश
बाहर से अंतरतम तक
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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