Pages

Tuesday, 30 May 2017

तब, लबालब थीं - तुम


तब, 
लबालब
थीं - तुम

बही
उमड़ती
घुमड़ती
बलखाती

यौवन के सावन में

पर
कुछ दूर चल कर सूख गयीं
तुम

शायद पहाड़ी नदी थी - तुम और
तुम्हारा प्रेम

यदि नहीं तो
बरसो फिर बरसो
और मै भीगूँ
झम झमा झम - अनवरत -अहर्निश
बाहर से अंतरतम तक

मुकेश इलाहाबादी --------------------

No comments:

Post a Comment