मद्धम - मद्धम सी आँच रहती है
मेरे सीने में जैसे आग जलती है
अपने काम से काम रखता हूँ तो
दुनिया मुझको मगरूर कहती है
कजरारी आँखे, गालों पे डिम्पल
मुझे तू आसमानी हूर लगती है
अगर तू मेरी मुहब्बत नहीं है तो
तू ही बता तू मेरी क्या लगती है
मुकेश इलाहाबादी -------------
मेरे सीने में जैसे आग जलती है
अपने काम से काम रखता हूँ तो
दुनिया मुझको मगरूर कहती है
कजरारी आँखे, गालों पे डिम्पल
मुझे तू आसमानी हूर लगती है
अगर तू मेरी मुहब्बत नहीं है तो
तू ही बता तू मेरी क्या लगती है
मुकेश इलाहाबादी -------------
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