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Monday, 26 June 2017

मृगतृष्णा

तुम्हारी,
दोस्ती ऐसी मृगतृष्णा है, जहाँ लगता  तो है  मीठे पानी का समंदर है
पर, जितनी दूर तक देखो रेत  ही रेत नज़र आती है -
फिर भी, न जाने क्यूँ, इस रेगिस्तान में प्यास और पसीने  से तर बतर चलते
और चलते रहना चाहता हूँ -  भले ही थकन से पोर - पोर टूट जाए
और एक दिन खुद भी इसी रेगिस्तान में रेत बन बिखर जाऊं
मीठे पानी की चाहत में - तुम्हारी आँखों के रेगिस्तान में -
ओ ! मेरी मृगतृष्णा -

ओ !  मेरी मैना - तुम्हरी  मीठी - मीठी बोली ही तो मेरे जीवन का उत्सर्ग  है
मेरे जीवन की प्यास है -

क्यूँ सुन रही हो न मेरी मृगनयनी ?
सच ! तुम्हारी इन कजरारी - कजरारी बड़ेरी अँखियों में डूब जाना चाहता हूँ -
हमेशा - हमेशा के लिए - भले ही तुम्हारी इन आँखों
में रेत का - तन्हाई का - अजीब सी मस्ती का माया जाल हो -
सच , तुम्हारे इसी माया जाल में फंसा रहना चाहता हूँ जन्मो जन्मो तक - युगों युगों तक
जब तक कि क़यामत न आ जाये
ये दुनिया दुनिया फ़ना न हो जाए।

मुकेश इलाहाबादी -------------------

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