तुम्हे शिकायत हम शिद्दत से सुनते नहीं
तुम भी तो हमसे खुलके कुछ कहते नहीं
चलो लौट चलते हैं फिर वही अपने रस्ते
तुम्हारे और हमारे रस्ते कंही मिलते नहीं
तू गुल है आज खिलेगी कल भी खिलेगी
हम तो पत्थर हैं हम पे बहारें आती नहीं
मुकेश मै नदी का इक किनारा तुम दूसरा
दो किनारे कभी इक दूजे में सिमटते नहीं
मुकेश इलाहाबादी --------------------
तुम भी तो हमसे खुलके कुछ कहते नहीं
चलो लौट चलते हैं फिर वही अपने रस्ते
तुम्हारे और हमारे रस्ते कंही मिलते नहीं
तू गुल है आज खिलेगी कल भी खिलेगी
हम तो पत्थर हैं हम पे बहारें आती नहीं
मुकेश मै नदी का इक किनारा तुम दूसरा
दो किनारे कभी इक दूजे में सिमटते नहीं
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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