एक
----
एकांत
मुझे अच्छा लगता है
क्यूंकि,
तुम्हारे बारे में 'मै '
सोच सकता हूँ
तफ्सील से
'मै ' रो सकता हूँ
अपने दुःखो पे
अपने मर्दपन के
अहंकार से अलग हो के
लिख सकता हूँ
तुम्हे प्रेम पत्र
बिना डर के
एकांत
मुझे अच्छा लगता है
क्यूँकि तब 'मै '
पूर्ण स्वतंत्र और मौलिक
बिना किसी मुखौटे के
और इस लिए भी कि
तुमसे चैट कर सकता हूँ आराम से
मुकेश इलाहाबादी -----
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एकांत
मुझे अच्छा लगता है
क्यूंकि,
तुम्हारे बारे में 'मै '
सोच सकता हूँ
तफ्सील से
'मै ' रो सकता हूँ
अपने दुःखो पे
अपने मर्दपन के
अहंकार से अलग हो के
लिख सकता हूँ
तुम्हे प्रेम पत्र
बिना डर के
एकांत
मुझे अच्छा लगता है
क्यूँकि तब 'मै '
पूर्ण स्वतंत्र और मौलिक
बिना किसी मुखौटे के
और इस लिए भी कि
तुमसे चैट कर सकता हूँ आराम से
मुकेश इलाहाबादी -----
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