एक
हारिल चिड़िया
रोज़ मेरे कमरे में आती है
एक चक्कर लगाती है
कुछ देर बंद पंखे की पंखुड़ी पे
या रोशन दान पे बैठेगी
अपनी चोंच वाली गर्दन इधर उधर घुमाएगी
और फिर फुर्र से उड़ जाती है
बाहर
शायद वो अपने चिड़े को ढूंढने आती है
और फिर चिड़े को न पा के लौट जाती है
मै अपने कमरे में उदास बैठ के सोचता हूँ
काश तुम भी हारिल चिड़िया होती ?
और फिर उदास हो कर
मुँह में सिगरेट दबा
खिड़की के बाहर न जाने क्या - क्या देखता रहता हूँ
शायद
खाली आसमान
शायद
दूर तक सूनी सड़क
या फिर इनमे से कुछ भी नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
हारिल चिड़िया
रोज़ मेरे कमरे में आती है
एक चक्कर लगाती है
कुछ देर बंद पंखे की पंखुड़ी पे
या रोशन दान पे बैठेगी
अपनी चोंच वाली गर्दन इधर उधर घुमाएगी
और फिर फुर्र से उड़ जाती है
बाहर
शायद वो अपने चिड़े को ढूंढने आती है
और फिर चिड़े को न पा के लौट जाती है
मै अपने कमरे में उदास बैठ के सोचता हूँ
काश तुम भी हारिल चिड़िया होती ?
और फिर उदास हो कर
मुँह में सिगरेट दबा
खिड़की के बाहर न जाने क्या - क्या देखता रहता हूँ
शायद
खाली आसमान
शायद
दूर तक सूनी सड़क
या फिर इनमे से कुछ भी नहीं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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