Pages

Friday, 21 July 2017

हारिल चिड़िया

एक
हारिल चिड़िया
रोज़ मेरे कमरे में आती है
एक चक्कर लगाती है
कुछ देर बंद पंखे की पंखुड़ी पे
या रोशन दान पे बैठेगी
अपनी चोंच वाली गर्दन इधर उधर घुमाएगी
और फिर फुर्र से उड़ जाती है
बाहर

शायद वो अपने चिड़े को ढूंढने आती है
और फिर चिड़े को न पा के लौट जाती है

मै अपने कमरे में उदास बैठ के सोचता हूँ
काश तुम भी हारिल चिड़िया होती ?
और फिर उदास हो कर
मुँह में सिगरेट दबा
खिड़की के बाहर न जाने क्या - क्या देखता रहता हूँ
शायद
खाली आसमान
शायद
दूर तक सूनी सड़क
या फिर इनमे से कुछ भी नहीं

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

No comments:

Post a Comment