हवा
फुसफुसाते हुए
हौले से
बहती है
गुलाब की
दो पत्तियां
कांप के रह जाती हैं
हवा मुस्कुरा के बढ़ जाती है
पत्तियां शरमा के सिर झुका लेती हैं
दोनों जान लेते हैं
क्या कुछ पूछा गया
क्या कुछ कहा गया
मुकेश इलाहाबादी ------
फुसफुसाते हुए
हौले से
बहती है
गुलाब की
दो पत्तियां
कांप के रह जाती हैं
हवा मुस्कुरा के बढ़ जाती है
पत्तियां शरमा के सिर झुका लेती हैं
दोनों जान लेते हैं
क्या कुछ पूछा गया
क्या कुछ कहा गया
मुकेश इलाहाबादी ------
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