तुम्हारी
उन्मुक्त हंसी
भर देती है
उजास से
मेरे अंतरतम को
और मै डूबने से बच जाता हूँ
उदासी के गहन गह्वर में
मुकेश इलाहाबादी ---------
उन्मुक्त हंसी
भर देती है
उजास से
मेरे अंतरतम को
और मै डूबने से बच जाता हूँ
उदासी के गहन गह्वर में
मुकेश इलाहाबादी ---------
No comments:
Post a Comment