ज़िंन्दगी कुछ इस तरह गुज़रती है
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सुबह
होते ही तेरी यादों के फूल
खिल उठते हैं
और मेरी सुबह महक उठती है
दोपहर
ज़िंदगी की चिलचिलाती धूप
तुम्हारी हँसी की
छाँव में गुज़र जाती है
सांझ
यादों की झील में
चाँद बन उतर आती हो तुम
और मेरी रात चाँदनी चाँदनी हो जाती है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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सुबह
होते ही तेरी यादों के फूल
खिल उठते हैं
और मेरी सुबह महक उठती है
दोपहर
ज़िंदगी की चिलचिलाती धूप
तुम्हारी हँसी की
छाँव में गुज़र जाती है
सांझ
यादों की झील में
चाँद बन उतर आती हो तुम
और मेरी रात चाँदनी चाँदनी हो जाती है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------
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