Pages

Thursday, 17 August 2017

रोशनी दे भी सकता था किसी ने जलाया ही नहीं


रोशनी दे भी सकता था किसी ने जलाया ही नहीं
मै हीरा हो भी सकता था किसी ने तरासा ही नहीं

यूँ बेवजह उदास रहने का मुझको कोई शौक नहीं
वज़ह ये रही मुझको, किसी ने गुदगुदाया ही नहीं

मरूंगा तो फ़क़त मेरे करम साथ जाएंगे, लिहाज़ा
सच्चाई और ईश्क़ के सिवाए कुछ कमाया ही नहीं

महफ़िल में सभी की चाहत थी मै कुछ तो सुनाऊँ
बज़्म  में तू नहीं थी इसलिए कुछ सुनाया ही नहीं

सच पूछो तो  जिस दिन से तुझसे मिला हूँ, मुकेश
किसी और को मैंने, अपना दोस्त बनाया ही नहीं

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

No comments:

Post a Comment